राज्यारोहण के 20वें साल सम्राट अशोक ने की थी लुंबिनी की यात्रा
बलिराम सिंह, नई दिल्ली
Emperor Ashoka visited the birth place of Lord Buddha. He also granted Lumbini a tax free status.
एक बार सम्राट अशोक के मन में भगवान बुद्ध के जन्मस्थान को देखने की प्रबल इच्छा हुई। सम्राट अशोक ने अपने गुरू मोगलीपुत्र तिस्स के साथ भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी देखने गए। इतिहासकारों के मुताबिक सम्राट अशोक ने भगवान बुद्ध के जन्म से 318 वर्ष बाद और अपने राज्याभिषेक के 20वें साल में लुंबिनी की यात्रा की और यहां पर एक पाषाण स्तंभ लगवाया। सम्राट अशोक ने इस यात्रा के दौरान ही लुंबिनी ग्राम से लगान में 87.5 फीसदी माफ कर िदया, अर्थात कुल उत्पादन का लगान के तौर पर 1/8 वां हिस्सा ही देने का आदेश दिया और शेष कर माफ कर दिया।
अशोक ने भगवान बुद्ध के जन्मस्थल के चारों ओर पत्थर की दीवार बनवाई, और स्मारक के रूप में एक स्तंभ का निर्माण करवाया।
स्तंभ पर लिखा गया ’इध बुधे जाते’-
स्तम्भ पर ’इध बुधे जाते’ अर्थात यहां बुद्ध का जन्म हुआ था, अंकित किया, जो आज भी नेपाल में भगवान बुद्ध के जन्मस्थान को सुनिश्चित कर रहा है। भगवान बुद्ध के प्रति अपनी असीम श्रद्धा के कारण सम्राट अशोक ने पवित्र लुंबिनी अंचल (क्षेत्र) को दान कर दिया। जिस पुष्करणी (जल कुंड) से महामाया (भगवान बुद्ध की मां) ने पानी पीया था, वह आज भी विद्धमान है। पुष्करणी की दूसरी तरफ एक ऊंचा टीला है, जिसपर ईंटों का विशाल स्तंभ देखने को मिलता है। जो सिद्धार्थ के जन्मस्थान होने का संकेत कर रहा है।
लुंबिनी में दो अधुनिक विहार-
लुंबिनी में दो आधुनिक विहार है। पहला थेरवादी बुद्ध विहार, जिसका निर्माण वर्ष 1956 में कुशीनगर के भिक्षु चंद्रमणि महाथेरा द्वारा निर्मित कराया गया और दूसरा तिब्बतियों द्वारा बनाया गया बुद्ध विहार है।
कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया अशोक-
कलिंग युद्ध में लाखों लोगों के मरने के बाद सम्राट अशोक का मन विचलित हो गया और बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सम्राट अशोक ने लुंबिनी ग्राम का दर्शन करने आया। इसके अलावा सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा।