आठ प्रमुख स्थल: लुम्बिनी-कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, राजगीर-नालंदा, वैशाली, श्रावस्ती, संकिसा।
-बुद्ध को जानने के लिए इन आठ स्थलों की यात्रा अवश्य करें
Buddhadarshan News, Lucknow
दुनिया को शांति एवं अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध के जीवन को करीब से जानना चाहते हैं तो उनसे जुड़े आठ प्रमुख स्थलों की यात्रा जरूर कीजिए। इनमें से सात स्थान भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार में स्थित हैं, जबकि उनकी जन्मस्थली लुम्बिनी नेपाल में स्थित है।
ये हैं आठ प्रमुख दर्शनीय स्थल:
1.लुम्बिनी-कपिलवस्तु, 2.बोधगया, 3.सारनाथ, 4.कुशीनगर, 5.राजगीर-नालंदा, 6. वैशाली, 7.श्रावस्ती, 8. संकिसा।
उत्तरी भारत के हिमालय पर्वत की तराई में शाक्यों का कपिलवस्तु नाम का एक वैभवशाली नगर था। वर्तमान में यह स्थान उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जनपद में पिपरहवा गांव में स्थित है। यही सिद्धार्थ गौतम की मूल नगरी थी। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोधन यहीं पर राज्य करते थे।
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महाराज शुद्धोधन की दो रानियां थी। एक का नाम महामाया और दूसरी का नाम था प्रजापति गौतमी। दोनों सगी बहनें थीं।
जब महामाया का प्रसव काल समीप आया, तब उन्होंने अपने मायके जाने की इच्छा प्रकट की। अत: महाराज शुद्धोधन ने उन्हें तुरंत भेज दिया। कपिलवस्तु से लगभग 10 किमी की दूरी पर शुद्धोधन का राज-उद्यान था, जहां पर महामाया ने कुछ देर विश्राम करने की इच्छा व्यक्त कीं। इसी स्थान को लुम्बिनी वन के नाम से जाना जाता था। यहीं पर 563 ई.पू. बैशाख पूर्णिमा के दिन साल वृक्ष के नीचे महामाया ने एक बच्चे को जन्म दिया। बौद्ध जगत में यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह स्थान वर्तमान में भारत-नेपाल सीमा से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित है। इसे आज रूमि्मनदेई के नाम से पुकारा जाता है।
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बोधगया भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भर में बौद्धों के लिए पवित्र एवं दर्शनीय स्थल है। बौद्धों के लिए बोधगया का वही महत्व है जैसा महत्व मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना और ईसाइयों के लिए बेथलहम। यहां पर राजकुमार सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी और वे बुद्ध कहलाए। यह स्थान बिहार प्रदेश के गया शहर से 12 किमी दूर निरंजना नदी के तट पर स्थित है।
भगवान बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति के बाद आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पंचवर्गीय भिक्षुओं को अपना प्रथम उपदेश वाराणसी से 8 किमी दूर सारनाथ में दिया था। जिसे धम्मचक्कप्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।
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कुशीनगर में भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। इसी कारण यह नगर आज भी समस्त संसार में बहुत पवित्र और आस्था का प्रतीक माना जाता है। यह शहर पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुख्य शहर गोरखपुर से 53 किमी पूर्व में स्थित है।
प्राचीन काल में राजगीर को मुख्य रूप से मगध राज बिम्बिसार की राजधानी के नाम से जाना जाता है। यह वर्तमान में बिहार की राजधानी पटना से सटे नालंदा जिला में स्थित है। नालंदा से 13 किमी दूर दक्षिण दिशा में पहाड़ियों के बीच राजगीर स्थित है और बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन से 55 किमी दक्षिण दिशा में स्थित है।
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महाराज बिम्बिसार ने अपना राजकीय उद्यान (वेणुवन) बुद्ध और उनके भिक्षुओं को प्रथम दान किया था। इसके मध्य में एक सरोवर है, जिसमें तथागत स्नान किया करते थे।
तथागत बुद्ध ने नालंदा में कई बार उपदेश देकर लोगों का कल्याण किया। नालंदा शिक्षा संस्थान के रूप में जगत प्रसिद्ध विश्चविद्यालय था। इसका संचालन राजा द्वारा दिए गए दान और कृषि कार्य से होने वाली आय से चलता था।
वैशाली इंडिया का काफी प्राचीन और ऐतिहासिक नगर है। यह मुजफ्फरपुर से 40 किमी दक्षिण दिशा और हाजीपुर से 35 किमी पूर्व दिशा में स्थित है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार इसे लिच्छवियों ने बसाया था। लिच्छवियों की तथागत के प्रति बहुत ज्यादा श्रद्धा थी। इसी वजह से तथागत के पवित्र धातु अवशेषों के ऊपर एक स्तूप का निर्माण किया था, जो वर्तमान में राजकीय पुष्करणी और सम्राट अशोक द्वारा स्थापित सिंह स्तंभ के बीच स्थित है। बौद्ध साहित्य के अनुसार भगवान बुद्ध अपने वैशाली के अंतिम यात्रा के दौरान वहां की नगरवधू आम्रपाली के उपवन में ठहरें।
श्रावस्ती भगवान बुद्ध के समय कोशलराज प्रसेनजित की राजधानी थी। तथागत ने अपने जीवन के 45 वर्षावासों में से 25 वर्षावास श्रावस्ती में ही व्यतीत किए, जिसकी वजह से त्रिपिटक में संग्रहीत उपदेशों में यहां दिए गए उपदेशों की संख्या सर्वाधिक है। वर्तमान में इसे सहेट-महेट के नाम से जाना जाता है। यह नगर बलरामपुर जिला से बहराइच जिला को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर जनपद बलरामपुर के अंतर्गत स्थित है। यह बलरामपुर शहर से 14 किमी और बहराइच शहर से 40 किमी दूरी पर है। सहेट में आनंद बोधिवृक्ष है, जिसे बोधगया के बोधिवृक्ष के बीज से उगाया गया है। महेट प्राचीन श्रावस्ती नगर है। यह राप्ती नदी के दक्षिण में स्थित है।
संकिसा बहुत ही छोटा लेकिन महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर बुद्ध ने अपनी माता की स्मृति में लोगों को उपदेश दिया। बौद्ध साहित्य में भगवान बुद्ध ने अन्य स्थानों पर विनय और सुत्तपिटक का उपदेश दिया। लेकिन उन्होंने केवल संकिसा में ही महत्वपूर्ण अभिधम्मपिटक का उपदेश दिया था। इसे बौद्ध दर्शन का महत्वपूर्ण खजाना कहा जाता है। वर्तमान में संकिसा फर्रुखाबाद जिला में मुख्यालय से 74 किमी दूर मुहमदाबाद जाने वाली मुख्य पक्की सड़क के किनारे स्थित है। संकिसा से 11 किमी दूर पखाना रेलवे स्टेशन है।