नागर मल, मीराबाई, सिकंदर लोदी ने संत रविदास को अपना गुरू माना
Messages from Sant Ravidas
Buddhadarshan News, 28 October
संत रविदास जी का जन्म 1456 संवत में माना जाता है।
इनका जन्म काशी के पास मांडुर ग्राम (वर्तमान में मडुवाडीह) में हुआ था।
इनके पिता का नाम रग्धु और माता का नाम घुरविनय था।
घर में पैतृक कार्य चमड़े के जूते बनाने का था।
संत रविदास ने हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों, रूढ़ियों और जाति व्यवस्था के विरुद्ध खुलकर आवाज उठाई।
ये संत रामानंद के सत्संग में भी सम्मिलित हुआ करते थे।
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इनके पिता को इस तरह की गतिविधियां पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने लोना नाम की लड़की से संत रविदास की शादी कर दी।
बाद में पिता ने उन्हें अलग भी कर दिया।
कई बार रविदास जी का शास्त्रार्थ ब्राह्मणों से हुआ था।
उन्होंने बनारस नरेश के दरबार में एवं प्रयाग के कुंभ मेला में शास्त्रार्थ किया था और जिन्होंने भी संत रविदास से शास्त्राथ किया, वो बाद में संत रविदास का शिष्य बन गया।
नागर मल, मीराबाई, सिकंदर लोदी भी उनके शिष्य बन गए थे।
चित्तौड़ की रानी झाली ने रविदास जी को चित्तौड़ बुलवाया था।
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विद्वानों की राय है कि संवत 1504 में रविदास जी ने अपना देह चित्तौड़ में ही त्याग दिया, चित्तौड़ में ही संत रविदास जी की छतरी बनी हुई है, जिसे झाली रानी ने बनवाया था।
संत रविदास बहुत ही कम पढ़े-लिखे थे।
जो भी उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था, वह साधु संतों की संगति और गुरू भक्ति से प्राप्त हुआ था।
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संत रविदास के प्रमुख उपदेश:
संत रविदास धार्मिक कट्टरता के घोर विरोधी थे।
संत रविदास औपचारिक पूजा, अर्चना, कर्मकांड, बाह्य आडम्बर, जप, तप, तीर्थ यात्रा धार्मिक ग्रंथों के पाठ को महत्व नहीं देते थे।
भाव विभोर होकर हरि का कीर्तन करना उनकी साधना का मुख्य अंग था।
उन्होंने सदैव निराकार को अपनाया।
संत रविदास अक्सर कहा करते थे, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’
उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति संसार के 68 तीर्थ स्थलों की यात्रा करे, लेकिन यदि उसका आचरण ठीक नहीं है तो वह अवश्य ही नर्क का भोगी होगा।”