Contribution of Indian women in development
भारत का नवनिर्माण इसकी आज़ादी के साथ हुआ। राष्ट्र निर्माण के विभिन्न स्तरों पर भारतीय नारी का असीम योगदान रहा है। महिलाओं ने न सिर्फ कड़े संघर्ष से मिली स्वतंत्रता को बनाए रखा, बल्कि हर क्षेत्र में अपने देश का नाम मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के साथ बुलंदियों तक पहुंचाया।
राजनैतिक और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में महिलाओं ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। विजय लक्ष्मी पंडित ने चार बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1953-54 में वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की सदस्य भी रहीं। कुल्सुम जे. सायानी ने 1957 में यूनेस्को के तत्वावधान में हुए प्रौढ़ शिक्षा सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इंदिरा गांधी ने देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शासन व्यवस्था बखूबी संचालित की। उनके नेतृत्व में भारत राजनीतिक मोर्चे पर ही आगे नहीं बढ़ा बल्कि आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में उसने उल्लेखनीय प्रगति की है। शांतिदूत मदर टेरेसा ने विदेशी होते हुए भी भारत को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। कलकत्ता में ’द सोसाइटी ऑफ द मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ नामक संस्था के माध्यम से उन्होंने ग़रीबों, दीन-दुखियों, लाचारों की सेवा का बीड़ा उठाया। उन्होंने करुणा तथा प्रेम को नया अर्थ प्रदान किया।
वर्तमान में भी महिलाएं दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में महापौर, मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, राज्य मंत्री और सांसदों के पद पर आसीन हो देश की प्रगति के लिए कार्यशील हैं। देश के विभिन्न राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों में भी महिलाएं विभिन्न पदों पर आसीन हैं। अनेक सामाजिक संगठनों के बल पर राष्ट्र की छवि निखारने का बीड़ा महिलाओं ने उठाया है।
हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं महिलाएं-
आज मीडिया, पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में भी महिलाओं का वर्चस्व क़ायम है। सेना, वायुयान उड़ाना, पर्वतारोहण आदि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी भागीदारी करके लैंगिक असमानता को दूर कर दिखाया है। शिक्षा, विज्ञान, खेल-कूद, व्यवसाय, सूचना-प्रौद्योगिकी, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों से अधिक योग्य सिद्ध हो रही हैं। अत: देश के विकास में महिलाओं का योगदान काफी अहम है।
खेती में पुरुषों से ज्यादा कार्य करती हैं महिलाएं-
-ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहरी क्षेत्र तक महिलाओं ने समाज, राष्ट्र के विकास में महतवपूर्ण योगदान दिया है। आज भी देश की लगभग 65 से 70 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है और ग्रामीण क्षेत्र का मुख्य कार्य कृषि है। ग्रामीण क्षेत्र में कृषि से लेकर, वािनकी, मछली पालन, पशुपालन, चाय के बगान जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में महिलाओं का योगदान पुरुषों के अपेक्षा ज्यादा है।
– कृषि क्षेत्र में कुल श्रम की 60 से 80 फीसदी तक हिस्सेदारी महिलाओं की होती है। फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) के एक अध्ययन से पता चला है कि हिमालय क्षेत्र में प्रति हैक्टेयर प्रति वर्ष एक पुरुष औसतन 1212 घंटे और एक महिला औसतन 3485 घंटे कार्य करती है। कृषि कार्यों के साथ ही महिलाएं मछली पालन, कृषि वानिकी और पशु पालन में भी योगदान दे रही हैं। महिलाओं की यह लगन और मेहनत गरीबी उन्मूलन में उनके योगदान को साफ तौर पर दर्शाता है।
ग्रामीण समुदाय को रोजगार देने वाले राष्ट्रीय कार्यक्रम मनरेगा में पुरूषों की बजाए महिलाएं ज्यादा तादाद में कार्य कर रही हैं। चालू वित्तीय वर्ष में अक्टूबर तक महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून में महिलाओं ने 50 प्रतिशत से अधिक रोजगार प्राप्त किया।
देश में 90 प्रतिशत महिला श्रमिक या तो खेतिहर मजदूर हैं या कृषक हैं। उनके द्वारा किए गए कार्य में से अधिकांश का भुगतान भी नहीं होता क्योंकि वे अपने ही खेतों में कार्य करती हैं। मनरेगा ने इस स्थिति को बदला है। अब महिलाओं को भुगतान न किए जाने वाले कार्य जैसे भूमि का समतलीकरण और अपने ही खेतों में तालाब खोदने के लिए भी भुगतान किया जाता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डीआरडब्ल्यूए की ओर से नौ राज्यों में किए गए एक शोध से पता चला है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की 75 फीसदी भागीदारी, बागवानी में 79 फीसदी और कटाई उपरांत कार्यों में 51 फीसदी महिलाओं की हिस्सेदारी होती है। पशु पालन में महिलाएं 58 फीसदी और मछली उत्पादन में 95 फीसदी भागीदारी निभाती हैं। कृषि क्षेत्र में महिलाओं की सबसे अधिक भागीदारी हिमाचल प्रदेश में है। यह आंकड़े काफी उत्साहजनक हैं। महिलाओं को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए यदि उन्हें उचित मौके दिए जाएं और जरूरी तकनीक उपलब्ध कराई जाए तो उनकी हिस्सेदारी को और अधिक लाभ के रूप में परिणित किया जा सकता है।
–नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) के आंकड़ों के मुताबिक 23 राज्यों में कृषि, वानिकी और मछली पालन में कुल श्रम शक्ति का 50 फीसदी भाग महिलाओं का है। छत्तीसगढ़, बिहार और मध्य प्रदेश में 70 फीसदी से ज्यादा महिलाएं कृषि क्षेत्र पर आधारित हैं, जबकि पंजाब, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु और केरल में यह संख्या 50 फीसदी है। मिजोरम, आसाम, छत्तीसगढ़, अरूणाचल प्रदेश और नागालैंड में कृषि क्षेत्र में 10 फीसदी महिला श्रम शक्ति है। कृषि में पुरूषों के साथ महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को काफी हद तक बदला जा सकता है। इससे महिलाओं के सशक्तिकरण को और अधिक बढ़ावा भी मिल सकता है।
– फसल उत्पादन के प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य में महिलाओं का अहम योगदान होता है। इसमें पौध लगाना, खरपतवार हटाना और कटाई उपरांत की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी शामिल है। बागवानी में भी महिलाएं काफी अहम योगदान देती हैं इनमें पौध लगाना, बेसिन बनाना, कटाई-छंटाई करना और खाद डालना शामिल हैं। इस क्षेत्र में यदि महिलाओं को अधिक वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराते हुए उनकी पहुंच बाजार तक कराने की कोशिश की जाए तो मुनाफा और अधिक बढ़ सकता है।
-पशु उत्पादन और प्रबंधन के क्षेत्र में महिलाएं प्रमुख योगदान दे रही हैं। गाय और भैंसों के पालन में महिलाएं रोजाना तीन से छह घंटे तक श्रम करती हैं। इसमें दुधारू पशुओं को चारा खिलाना, दूध निकालना और पशु आवास-पशु की साफ-सफाई का कार्य शामिल है। चारा एकत्रित करने में भी महिलाएं काफी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। पशु उत्पादन और प्रबंधन के लिए जरूरी तकनीकी ज्ञान, कौशल और पशु पालन हेतु वित्तीय व्यवस्था जैसे बिंदु महिलाओं से जुड़े हैं।
-मछली उत्पादन में प्रमुखतः तटीय और गैर-तटीय क्रियाएं शामिल होती हैं। तटीय कार्यों में मछली पकड़ना मुख्य कार्य है जबकि गैर-तटीय कार्यों में मछलियों के लिए जाल बनाना मुख्य कार्य माना जाता है।
–देश के ज्यादातर ग्रामीण समुदाय अपनी आजीविका के लिए ग्रामीण संसाधनों पर ही निर्भर रहते हैं। इनमें से प्रमुख जल, खाद्य, ईंधन, चारा, घर और अन्य सामाजिक जरूरतों को पूरा करने वाले संसाधन हैं। महिलाएं प्राकृतिक संसाधनों से आजीविका का स्रोत प्राप्त करने में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। इसमें खाद्य पदार्थ एकत्रित करने, ईंधन के लिए लकड़ियां इकट्ठी करने, छोटे पौधों को रोपना जैसे कार्य शामिल हैं। महिलाओं की इस क्षेत्र में प्रमुख चुनौती उनके योगदान को चिन्हित करने और सूचना-तकनीक तक उनकी पहुंच को और अधिक मजबूत बनाने की है।
-हालांकि कृषि क्षेत्र में तेजी के साथ परिवर्तन हो रहे हैं। यह परिवर्तन वातावरण, जलवायु और तकनीक सभी क्षेत्रों में हो रहे हैं। इसका असर समाज के सभी क्षेत्रों में समान रूप से पड़ रहा है। समाज में आ रहे परिर्वतनों जैसे परिवार की संरचना, पलायन और अंतरराष्ट्रीय राजनीति सभी कुछ इससे प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में नई रणनीतियों को बनाते समय इन सभी परिवर्तनों को भी परखना होगा।
देश में हैं 14 फीसदी महिला कारोबार-
-हालांकि महिलाओं के इस याेगदान के इतर भारत में आज भी महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कुछ मामलों में काफी पिछड़ी हैं। भारत का केवल 14 फीसदी कारोबार महिला उद्यमी संभाल रही हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के छठे आर्थिक जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में कुल 5.85 करोड़ उद्यमी हैं, जिनमें से 80.5 लाख महिला उद्यमी हैं, जो 13480000 लोगों को रोजगार मुहैया करा रही हैं। जिन कारोबारी क्षेत्रों को महिलाएं संभाल रही हैं, उनमें फुटपाथ की दुकान से लेकर वेंचर फंड प्राप्त नए स्टार्ट-अप तक शामिल हैं।
दक्षिण राज्यों में है बेहतर स्थिति-
आकंड़ों से पता चलता है कि दक्षिण भारत में महिला उद्यमियों के लिए ज्यादा सहूलियत होती है। दक्षिणी राज्यों ने इस मामले में नेतृत्व किया है और सामाजिक नजरिया बेहद महत्वपूर्ण है। तमिलनाडु में 13.5 फीसदी कारोबार (10.8 लाख) महिलाएं संभाल रही हैं। जो देश के किसी भी अन्य राज्य से अधिक है। उसके बाद केरल में 9.1 लाख और आंध्र प्रदेश में 5.6 लाख महिला कारोबारी हैं।
महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे 82.19 फीसदी कारोबार लघु उद्योग हैं और जिनमें कम से कम एक कर्मचारी काम करता है। महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे कारोबार में 79 फीसदी स्ववित्तपोषित हैं। केवल 4.4 फीसदी महिला कारोबारियों ने किसी वित्तीय संस्था से ऋण लिया है या फिर सरकार से किसी प्रकार की मदद प्राप्त की है। महिला उद्यमियों में 60 फीसदी वंचित समुदाय से आती हैं। महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे कारोबार के 60 फीसदी (48.1 लाख) कारोबार अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं।
राष्ट्र के समग्र विकास तथा उसके निर्माण में महिलाओं का लेखा-जोखा और उनके योगदान का दायरा असीमित है तथापि देश के चहुंमुखी विकास तथा समाज में अपनी भागीदारी को उसने सशक्त ढंग से पूरा किया है। अपने अस्तित्त्व की स्वतंत्रता क़ायम रखते हुए वह पुरुषों से भी चार क़दम आगे निकल गई हैं। संकीर्णता, जात-पात, धार्मिक कट्टरता, भेदभाव, मानसिक गुलामी की ज़ंजीरों को तोड़कर महिलाओं ने देश को एक नई सोच, नया विचार प्रदान किया है।