बलिराम सिंह
वैसे तो दीपों का पर्व दीपावली भारत सहित पूरी दुनिया में मनाया जाता है। लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन जन्मस्थली अयोध्या में लोग यह त्यौहार कुछ विशेष ढंग से मनाते हैं। अयोध्या के मंदिरों, देवालयों के अलावा पवित्र नदी सरयू में दीपदान का दृश्य अद्भुत होता है।
अयोध्या सदियों से हिंदू धर्म से जुड़े लोगों की आस्था का केंद्र रही है। साल भर यह नगरी किसी न किसी त्यौहार से उत्सवमय नजर आती है लेकिन दीपों के महापर्व दीपावली पर यह धार्मिक नगरी पूरी तरह से राममय हो जाती है। दीपावली के मौके पर अयोध्या के सभी मंदिर रंगीन झालरों और दीपकों से जगमग हो जाते हैं। मंदिरों में विराजमान भगवान का श्रंगार होता है। इस मौके पर भगवान श्रीराम और जनक नंदिनी सीता के विग्रह को नए वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
भगवान के सामने होती है आतिशबाजी-
दीपावली के पर्व पर अयोध्या के मंदिरों के आंगन में आतिशबाजी होती है जिसका दर्शन स्वयं भगवान विग्रह स्वरूप में करते हैं। अयोध्या के प्रमुख मंदिरों में राम वल्लभा कुञ्ज,कनक भवन,जानकी महल,दशरथ जी का महल,हनुमानगढ़ी सहित लगभग 5000 से अधिक मंदिरों में दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है।
दीपावली की रात्रि में अयोध्यावासी पूरी रात जागते हैं और भगवान की याद में जागरण करते हैं।
वनवास से 14 साल बाद लौटने पर मनायी जाती है दिवाली-
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम अपने माता पिता की आज्ञा मानकर 14 साल तक वनवास में रहे। वनवास के दौरान भगवान राम ने लंका में रावण का बध किया। इतने लंबे समय बाद अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्यावासियों ने पूरी नगरी को दीपों से सजा दिया था। तब से लेकर आज तक इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए दीपावली का यह पर्व पूरे देश भर में मनाया जाता है।
दीपदान का दृश्य अलौकिक-
अयोध्या में श्रीमहंत रह चुके और दिल्ली में यमुना महाआरती के संस्थापक चंद्रमणि मिश्र कहते हैं कि अयोध्यावासी आज भी दिवाली के दिन शाम को पवित्र नदी सरयू में दीपदान करते हैं। यह दृश्य बहुत ही अलौकिक होता है। हजारों की संख्या में एक साथ सरयू नदी में तैरते दीपक देखकर एक अांतरिक ऊर्जा की अनुभूति होती है।
अयोध्यावासी गृहलक्ष्मी को देते हैं आभूषण-
चंद्रमणि मिश्र कहते हैं कि अयोध्या की एक खासियत यह भी है कि समाज का हर व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार अपनी पत्नी को लक्ष्मी का रूप मानते हुए उसे आभूषण देता है।