Buddhadarshan News, Lucknow
संसद पर फेंके जाने वाला बम भी डॉ. गया प्रसाद कटियार ने बनाया था, उन्हें 17 साल की हुई थी सजा- ए- कालापानी
‘उनकी तुर्बत में एक दीया भी नहीं,
जिन्होंने सींचा लहू से चिरागे वतन।
जगमगा रहे हैं, मकबरे उनके,
जिन्होंने बेचे थे शहीदों के कफन।’
वतन की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले क्रांतिकारियों को भुलाए जाने पर किसी शायर का यह शेर बिल्कुल सही बैठता है। आज शहीद-ए- आजम भगत सिंह के प्रिय मित्र क्रांतिकारी डॉ.गया प्रसाद कटियार की जयंती है। डॉ. गया प्रसाद कटियार देश के आधा दर्जन से ज्यादा शहरों में दवाखाना चलाते थें, जहां बाहर दवाखाना और अंदर बम बनाने की फैक्ट्री चलती थीं।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने संसद भवन के बाहर अंग्रेज सरकार के कान खोलने के लिए बम फेंके थे, वे बम डॉ.गया प्रसाद की देखरेख में तैयार किए गए थे। फिरोजपुर में वह डॉ.बीएस निगम के नाम से दवाखाना चलाते थें। देश के सम्मानित नेता लाला लाजपत राय की हत्या का जिम्मेदार अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्याकांड के बाद अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों की जब धर-पकड़ शुरू की तो डॉ.कटियार भी सहारनपुर में बम फैक्ट्री का संचालन करते हुए शिव वर्मा व जयदेव कपूर के साथ 15 मई 1929 को दर्जनों बमों और पिस्तौलों के साथ गिरफ्तार हुए।
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अलग-अलग जेलों में रहे 17 साल:
15 मई 1929 की गिरफ्तारी से लेकर 21 फरवरी 1946, रिहाई तक के लगभग 17 सालों के लंबे जेल जीवन में डॉ. साहब से घबराई अंग्रेज सरकार ने उन्हें हिन्दुस्तान के विभिन्न जेलों लाहौर, रावलपिण्डी, लखनऊ, कानपुर इत्यादि जेलों में रखा। अंडमान निकोबार द्वीप की सेल्यूलर जेल में सात वर्षों से अधिक समय रहें।
जेल में भूख हड़ताल:
अंडमान में सजा के दौरान 400 बंदी कैदियों के साथ मिलकर 46 दिन की भूख हड़ताल की, जो कि उस समय एक विश्व रिकार्ड थी। इसमें उनके सहयोगी महावीर सिंह की मृत्यु हो गई थी।
आजादी के बाद भी गए जेल:
डॉ.कटियार की पत्नी निर्मला देवी कहती हैं कि साम्यवादी विचारों का होने की वजह से आजादी के बाद भी डॉ. साहब हमेशा किसानों व मजदूरों की भलाई के लिए आवाज उठाते रहते थें, जिसकी वजह से उन्हें दो साल जेल (1958 में छह महीने, 1964 से 1966 तक डेढ़ साल) में रहना पड़ा।
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जीवन परिचय:
20 जून 1900 को कानपुर जिले की बिल्हौर तहसील से जुड़े गांव खजुरी खुर्द में पिता मौजीराम व माता नन्दरानी के घर इस महान क्रांतिकारी का जन्म हुआ। इनके दादा महादीन ने 1857 की क्रांति में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। गया प्रसाद ने हाई स्कूल पास करने के बाद डॉक्टरी का कोर्स किया और आर्य समाज व कानपुर की मजदूर सभा में कार्य करना शुरू किया। यहीं पर उनका परिचय महान क्रांतिकारी व पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी, हरिहर नाथ शास्त्री इत्यादि से हुआ।
जंगे आजादी के लिए पत्नी के माथे से सिंदूर पुंछवा दिये:
डॉ.गया प्रसाद में वतन की आजादी से इस कदर प्यार था कि उन्होंने अपनी पत्नी रज्जो देवी से यह कहकर माथे से सिंदूर पुंछवा दिया था कि मैं क्रांतिकारी पार्टी ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ का सदस्य बनकर मातृभूमि की सेवा के लिए प्राणों की बाजी लगाने जा रहा हूं और तुम समझ लो कि तुम विधवा हो गई हो। इसके बाद रज्जो देवी जीते जी पति के दर्शन कर सकीं और तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए। आज रज्जो देवी के जन्म व अवसान स्थल शिवराजपुर के बैरी गांव को लोग भूल गए हैं।
जेल से रिहा होने के बाद डॉ.गया प्रसाद कटियार का विवाह 1946 में निर्मला देवी के साथ हुआ। 10 फरवरी 1993 को चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह के सपनों का भारत निर्माण करने का ख्वाब लिए यह योद्धा सदा-सदा के लिए सो गया।
अनुप्रिया पटेल ने जारी कराया डाक टिकट:
पिछले साल केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने क्रांतिकारी डॉ. गया प्रसाद कटियार के नाम पर भारत सरकार से डाक टिकट जारी कराया।